ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को करारा झटका, हाईकोर्ट ने खारिज की समस्त याचिकाएँ, ट्रायल को दी मंजूरी

By: Shilpa Tue, 19 Dec 2023 4:03:17

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को करारा झटका, हाईकोर्ट ने खारिज की समस्त याचिकाएँ, ट्रायल को दी मंजूरी

वाराणसी। वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को बड़ा आदेश दिया है। ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के मुकदमे को ट्रायल की मंजूरी दे दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पांच याचिकाएं खारिज कर दी हैं।

जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मालिकाना हक विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिकाएं खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि मुकदमा देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट ने कहा कि हम वाराणसी जिला ट्रायल कोर्ट को छह महीने में मुकदमे का फैसला करने का निर्देश देते हैं।

ज्ञानवापी मामला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से बाहर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ज्ञानवापी का मामला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के दायरे से बाहर है। ऐसे में इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में की जा सकती है। इस फैसले का असर ज्ञानवापी परिसर में किए गए सर्वे पर भी पड़ सकता है। हिंदू पक्ष का कहना है कि हाल में हुए सर्वे में वुजुखाना समेत जो एरिया रह गया है उसका भी सर्वे किया जा सकता है। इसके अलावा खुदाई की भी इजाजत दी जा सकती है।

इस मामले में 8 दिसंबर को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिन 5 याचिकाओं पर हाईकोर्ट का फैसला आया है उसमें से 2 याचिकाएं सिविल विवाद और 3 याचिकाएं ASI सर्वे को लेकर दाखिल की गई थीं। मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल की गई याचिकाओं में कहा गया था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत इस मामले में सुनवाई नहीं की जा सकती है। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ज्ञानवापी के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?

इस कानून को 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में लाया गया था। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है। कानून के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में इस अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाया गया है।

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